Tuesday, May 5, 2020

कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता हैं, अवतारों में श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं।
१. श्री धन संपदा : प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! श्री-धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं।
२. भू अचल संपत्ति : वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है; पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! भू अचल संपत्ति कहलाती है।
३. कीर्ति यश प्रसिद्धि : जिस व्यक्ति की मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों और फैली हुई हो, लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते है।
४. इला वाणी की सम्मोहकता : इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी युक्त होता हैं; व्यक्ति की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता है तथा मन में भक्ति की भावना भर उठती हैं।
५. लीला आनंद उत्सव : इस कला से युक्त व्यक्त अपने जीवन की लीलाओं को रोचक और मोहक बनाने में सक्षम होता है। जिनकी लीला कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।
६. कांति सौदर्य और आभा : ऐसे व्यक्ति जिनके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है, वे इस कला से युक्त होते हैं। जिसके मुखमंडल को देखकर बार-बार छवि निहारने का मन करता है वह कांति सौदर्य और आभा कला से संपन्न होता है।
७. विद्या मेधा बुद्धि : सभी प्रकार के विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे! वेद-वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं।
८. विमला पारदर्शिता : जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता वह विमला पारदर्शिता कला से युक्त होता हैं; इनके लिए सभी एक समान होते हैं, न तो कोई बड़ा है और न छोटा।
९. उत्कर्षिणि प्रेरणा और नियोजन : युद्ध तथा सामान्य जीवन में जी प्रेरणा दायक तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य करता हैं वह इस कला से निपुण होता हैं। व्यक्ति में इतनी शक्ति व्याप्त होती हैं कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें।
१०. ज्ञान नीर क्षीर विवेक : अपने विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान करने से युक्त गुण ज्ञान नीर क्षीर विवेक नाम से जाना जाता हैं।
११. क्रिया कर्मण्यता : जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है तथा व्यक्ति सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करता हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देता हैं।
१२. योग चित्तलय : जिनका मन केन्द्रित है, जिन्होंने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है वह योग चित्तलय कला से संपन्न होते हैं; मृत व्यक्ति को भी पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।
१३. प्रहवि अत्यंतिक विनय : इसका अर्थ विनय है, मनुष्य जगत का स्वामी ही क्यों न हो, उसमें कर्ता का अहंकार नहीं होता है।
१४. सत्य यथार्य : व्यक्ति कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखता और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जनता हैं यह कला सत्य यथार्य के नाम से जानी जाती हैं।
१५. इसना आधिपत्य : व्यक्ति में वह गुण सर्वदा ही व्याप्त रहती हैं, जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है, आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपना प्रभाव की अनुभूति करता है।
१६. अनुग्रह उपकार : निस्वार्थ भावना से लोगों का उपकार करना अनुग्रह उपकार है।

Sunday, October 13, 2019

"नाग कौन थे ? उनका सांस्कृतिक विकास कितना ऊंचा था ?"
प्राचीन इतिहास के विद्यार्थी जब अतीत की मीमांसा करते हैं तो उन्हें चार नाम प्रायः मिलते हैं , आर्य , द्रविड़ , दास और नाग । इतिहास के विद्यार्थियों की सबसे बड़ी गलती दासों को नागों से पृथक करना है । दास और नाग एक ही हैं । दास , नागों का केवल दूसरा नाम मात्र है । यह समझना कठिन नहीं है कि वैदिक वाङ्मय में नागों का ही नाम दास क्यों पड़ा । दास भारतीय ईरानी शब्द दाहक का संस्कृत तत्सम रूप है । नागों के राजा का नाम दाहक था इसलिए आर्यों ने नागों के राजा के नाम पर सभी नागों को सामान्य रूप से दास कहना आरंभ किया । नाग कौन थे ? निस्संदेह वे अनार्य थे ।


वैदिक वाङ्मय को ध्यान से देखने से उसमें एक विसंगति और द्वेत की भावना दो तरह की संस्कृतियों और विचारधाराओं के बीच उहापोह की भावना साफ तौर पर दिखाई देती है । ऋग्वेद में हमारा परिचय आर्य देवता इन्द्र के शत्रु अहि वृत्र ( सांप देवता ) से होता है । पीछे चलकर यह सांप देवता नाग नाम से प्रसिद्ध हुआ , किंतु आरंभिक वैदिक वाङमय में नाग और नाम दृष्टिगोचर नहीं होता और जब यह शतपथ ब्राह्मण ( 11 - 2 , 7 , 12 ) में प्रथम बार आता है , तो यह स्पष्ट नहीं होता कि नाग का मतलब एक बड़ा सांप है या बड़ा हाथी । लेकिन इससे अहिवृत्र का स्वरूप नहीं छिपता क्योंकि ऋगवेद में उसका स्वरूप सदैव पानी में अथवा उसके चारों ओर छिपे तथा आकाश और पृथ्वी के जल पर समान रूप से अधिकार किए हुए सांप का है ।

अहिवृत्र संबंधी वेद मंत्रों से यह भी स्पष्ट है कि आर्य उसकी पूजा नहीं करते थे । वे उसे आसुरी प्रकृति का एक शक्तिशाली देवता मानते थे , जिसे परास्त करना ही इष्ट था ।

ऋग्वेद में नागों का नाम आने से यह स्पष्ट है कि ' नाग एक बहुत ही प्राचीन पुरूष थे । यह भी स्मरणीय है कि नाग न तो आदिवासी ही थे और न असभ्य ही । इतिहास नागों और राजकीय परिवारों के बीच निकट वैवाहिक संबंधों का भी साक्षी है । कदम्ब - नरेश कृष्णवमो ' के देवगिरि शिला - लेख के अनुसार कदम्बकुल का नागों से संबंध था । नवीं शताब्दी के राजकोट के दान पत्र में अश्वत्थामा एक के नाग कन्या के साथ विवाह का उल्लेख है । उन्हीं की संतान स्कंद शिष्य ने पल्लव वंश की स्थापना की । नवीं शताब्दी के ही एक दूसरे पल्लव शिला - लेख के अनुसार वीर - कुर्च पल्लव वंश का राजा था । इसी शिला - लेख में उल्लेख है कि उसने एक नाग कन्या से विवाह किया था और उससे उसे राज्य चिन्ह मिला था । वाकाटक नरेश प्रवरसेन के पुत्र गौतमी - पुत्र का भारवि नरेश भवनाग की पुत्री के साथ विवाह करना एक ऐतिहासिक घटना है । इसी प्रकार चन्द्रगुप्त द्वितीय का नाग - कुल ' की कुबेर नाग नामक कन्या से विवाह हुआ । एक तमिल कवि का कहना है कि कोक्किल्ली नाम के एक प्राचीन चोल नरेश ने एक नाग कन्या से विवाह किया । राजेन्द्र चोल को भी अपनी तेजस्विता के कारण नाग कन्या का पाणिग्रहण करने का श्रेय दिया जाता है । नावसाहशांक चरित में परमेश्वर नरेश सिंधुराज ( जिसने दसवीं शताब्दी के प्रथम भाग में राज्य किया होगा ) . और शशिप्रभा नामक नाग कन्या के विवाह का इतने विस्तार और ऐसी यथार्थता से वर्णन है कि हमें लगभग यह विश्वास हो जाता है कि इस कथन में कुछ ऐतिहासिकता अवश्य होगी । ( 973 - 1830 वि . स . ) के हर्ष के शिलालेख में हमें आभास मिलता है - गुवाक प्रथम नागों और कमारों की सभाओं में वीर रूप में प्रसिद्ध था । यह नरेश विग्रहराज चाहमान से ऊपर की पीढ़ी में छठा था । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह नवीं शताब्दी के मध्य में राज्य करता रहा होगा । उड़ीसा के भौमन वंश के शान्तिकर के पुत्र के एक शिलालेख में पता चलता है कि उसने नाग परिवार की त्रिभुवन महादेवी ' से विवाह किया था । शान्तिकर का समय 921 ई . के आस - पास समझना चाहिए ।


नाग सांस्कृतिक विकास की ऊंची अवस्था को तो प्राप्त थे ही इतिहास से यह - भी प्रकट होता है कि वह देश के एक बड़े भू - भाग पर राज्य भी करते थे । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि महाराष्ट्र नागों का क्षेत्र है । यहां के लोग और यहां के राजा नाग थे ।

एक से अधिक प्रमाणों से यह पता चलता है , ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में आंध्र देश और उसका पड़ोस नागों के अधीन था । सातवाहन और उनके छुतुकुल शातकर्मी उत्तराधिकारियों का रक्त नाग रक्त ही था । जैसा . डॉ . एच . सी . रायचौधरी ने निर्देश किया है सातवाहन वंश के पौराणिक प्रतिनिधि सालीहरण को पूनिया शत्पुकलिला ने ब्राह्मण और नाग के मेल से उत्पन्न स्वीकार किया है । उनकी वंशावलियों में जो नमूने के नाग नाम मिलते है । उनसे यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है । अनेक घटनाओं से यह भी सिद्ध होता है कि सातवाहन राज्य के अंतिम दिनों में नाग बहुत शक्तिशाली हो गये थे । सातवाहन वंश की मुख्य शाखा के अंतिम नरेश पुलुमवी के शासन काल में स्कन्दनाग नामक राजा राज्य करता था । दूसरे एक छुतु नरेश की कन्या नाग मुलनिका के बारे में उल्लेख है कि उसने शिकन्द नाग श्रीनाम के अपने पुत्र के साथ एक नाग की भेंट दी । इस वंश के सभी ज्ञात नरेशों क नाम यहीं हैं । इससे नागों से निकट संबंध सिद्ध होता है । तीसरे , सोरिनगोई की राजधानी उरगपुर के नाम से यब बात झलकती है कि यहां किसी नाग - राजा का अलग से राज्य नहीं था , किंतु उस चिरकाल स्थित प्रदेश में वह नागों का एक उपनिवेश था ।

सिंहल और स्याम की बौद्ध अनुश्रुति से भी हमें यह ज्ञात होता है कि करांची के पास मजेरिक नाम का एक नाग प्रदेश था ।

तीसरी और चौथी शताब्दी के प्रारंभ में उत्तरी भारत में भी अनेक नाग नरेशों का शासन रहा है । यह बात पुराणों , प्राचीन सिक्कों तथा लेखों से सिद्ध होती है । विदिशा चम्पावती , पदमावती और मथुरा का विशेष उल्लेख मिलता है कि उनकी असंदिग्ध है । यहां यह संभव नहीं है कि हम द्वितीय समूह के सिक्कों के विवाद में पड़े अथवा इन पौराणिक राजाओं के साथ अच्सुत गणपति नाग से इलाहाबाद स्तम्भ के नागसेना को मिला ' सकें । प्राचीन , भारतीय इतिहास में , जितने नागों का उल्लेख है , उनमें से चौथी शताब्दी के नाग परिवार ' सबसे अधिक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दृष्टि से युक्तियुक्त प्रतीत होते हैं । हमें पता नहीं कि लाहौर की ताम्र मुद्रा ' के नागभट्ट और उनके पुत्र महाराज महेश्वर नाग उक्त तीन परिवारों में से किसी एक के थे , स्वयं एक पृथक नाग परिवार था । लेकिन इन सबसे डाक्टर सी . सी . रायचौधरी के निष्कर्ष का समर्थन होता है कि उत्तर भारत में चतुर्थ शताब्दी के कुषाण राज्यों को नागों ने जीत लिया तो वे लुप्त हो गए ।

ये नाग उत्तरायण के विभिन्न प्रदेशों में शासन करते रहे होंगे । कालांतर में उन्हें समुद्रगुप्त की सेनाओं ने परास्त कर दिया था , जो ही स्कन्दगुप्त के समय तक हम एक सर्वनाग अंतर्वेदों ' का क्षात्रप ज्ञात होता है कि आस - पास विशेष रूप से भरूकच्छ में छठी शताब्दी तक नागों का महत्वपूर्ण स्थान था । जूनागढ़ शिलालेख से यह पता लगता है कि स्कन्दगुप्त ने नागों के एक विद्रोह को बुरी तरह दबाया था । 570 ई . में दट्टाप्रथम गुर्जन ने नागों को उखाड़ फेंका । उन्हें त्रिहुल्लक या भरूच ' के द्वारा शासित बनवास माना गया है । ध्रुवसेन द्वितीय के 645 ई . के दानपत्र में प्रभात् श्री नाग का दत्तक के नाम से उल्लेख है ।


नवीं शताब्दी में नागों को विशेष रूप से मध्यभारत में दूसरी बार फिर अपना प्रभुत्व जमाया । 800 ई . में कोशल स्थित श्रीपुर को महाराजा तीव्रदेव ने नाग के कबीले ' को हराया । इसके कुछ समय बाद बंगाल के शिलालेखों में भी नागों के दो उल्लेख मिलते हैं । महामांडलिक ईश्वर घोष के राजगंज के एक लेख से एक घोष नाग परिवार से हमारा परिचय होता है इसे ग्यारहवीं शताब्दी में माना गया है । बारहवीं शताब्दी के हरिवर्मादेव के मंत्री भट्ट भवदेव की भुवनेश्वर प्रशस्ति में भी उनके द्वारा नाग राजाओं के विनाश का उल्लेख है । रामचरित मानस में भी रामपाल द्वारा भाव भूषण सन्तति में उत्कल राज्य की विजय का उल्लेख किया गया है । लेकिन यहां यह स्पष्ट नहीं है कि वे नाग थे या चंद्र थे । अधिक संभावना यही है कि वे नाग ही थे , क्योकि वे ही अधिक प्रसिद्ध थे ।

दसवीं से बारहवीं शताब्दी में एक सैन्द्रक सिंद अथवा छिन्दक परिवार की अलग - अलग शाखाएं शनैः - शनैः मध्य भारत विशेष रूप से बस्तर के विभिन्न प्रदेशों में फैल गई । ये अपने को भोगवती और नागवंशी कहते थे । दसवीं शताब्दी के शिलालेख में बेगुर के नागोत्तरों का वर्णन है । वे पश्चिम गंग के राजा एरियप्प की ओर से वीर महेन्द्र के विरुद्ध लड़े और युद्ध में यश प्राप्त किया । यदि " भवसाहसांक - चरित " को प्रमाण माना जाए तो सिंधुराज परमार को रानी का पिता नाग नरेश इसी समय के आस - पास नर्मदा के तट पर रत्नावती में राज्य करता रहा होगा ।



Monday, July 15, 2019

सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस,
पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो,
दुखी न दीखै कोय।।

यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।

सावन पहिले पाख में,
दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल,
विरला विलसै कोय।।

यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।

पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।

सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।

यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘

काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो,
पूस अमावस की सुधि करो।

पूस उजेली सप्तमी,
अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो,
अब सुभ होइहै काज।।

यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।

अखै तीज तिथि के दिना,
गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी,
उपजै नाज बहूत।।

यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।

अकाल और सुकाल:-

सावन सुक्ला सप्तमी,
जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै,
नाहीं समौ सुकाल।।

यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।

असुनी नलिया अन्त विनासै।
गली रेवती जल को नासै।।

भरनी नासै तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।

आसाढ़ी पूनो दिना,
गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का,
आनंद मानो सत।।

आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।

वर्षा:-

रोहिनी बरसै मृग तपै,
कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी,
स्वान भात नहीं खाय।।

यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

उत्रा उत्तर दै गयी,
हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा,
परजा लेइ बहोरि।।

उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया।
चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।

खनिके काटै घनै मोरावै।
तव बरदा के दाम सुलावै।।

ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है। तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है।

हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।

हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं।

हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।

यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।

जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।

चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है।

जो बरसे पुनर्वसु स्वाती।

चरखा चलै न बोलै तांती।

पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती।

जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।।

मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं।

जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।

यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।

दसै असाढ़ी कृष्ण की,
मंगल रोहिनी होय।
सस्ता धान बिकाइ हैं,
हाथ न छुइहै कोय।।
यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा।

असाढ़ मास आठें अंधियारी।
जो निकले बादर जल धारी।।

चन्दा निकले बादर फोड़।
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।

असाढ़ मास पूनो दिवस,

बादल घेरे चन्द्र।

तो भड्डरी जोसी कहैं,

होवे परम अनन्द।।

यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।

पैदावार:-

रोहिनी जो बरसै नहीं,
बरसे जेठा मूर।
एक बूंद स्वाती पड़ै,
लागै तीनिउ नूर।।

यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा।

जोत:-

गहिर न जोतै बोवै धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।।

गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है।

गेहूं भवा काहें।
असाढ़ के दुइ बाहें।।
गेहूं भवा काहें।
सोलह बाहें नौ गाहें।।
गेहूं भवा काहें।
सोलह दायं बाहें।।
गेहूं भवा काहें।
कातिक के चौबाहें।।

गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कातिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से।

गेहूं बाहें।
धान बिदाहें।।

गेहूं की पैदावार अधिक बार जोतने से और धान की पैदावार विदाहने (धान का बीज बोने के अगले दिन जोतवा देने से,यदि धान के पौधों की रोपाई की जाती है तो विदाहने का काम नहीं करते, यह काम तभी किया जाता है जब आप खेत में सीधे धान का बीज बोते हैं) से अच्छी होती है।

गेहूं मटर सरसी।
औ जौ कुरसी।।

गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है।

गेहूं गाहा, धान विदाहा।
ऊख गोड़ाई से है आहा।।

जौ-गेहूं कई बांह करने से धान बिदाहने से और ऊख कई बार गोड़ने से इनकी पैदावार अच्छी होती है।

गेहूं बाहें, चना दलाये।
धान गाहें, मक्का निराये।
ऊख कसाये।

खूब बांह करने से गेहूं, खोंटने से चना, बार-बार पानी मिलने से धान, निराने से मक्का और पानी में छोड़कर बाद में बोने से उसकी फसल अच्छी होती है।

पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।

पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है।

पुरुवा में जिनि रोपो भैया।
एक धान में सोलह पैया।।

पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा।

बोवाई:-

कन्या धान मीनै जौ।
जहां चाहै तहंवै लौ।।

कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए।

कुलिहर भदई बोओ यार।

तब चिउरा की होय बहार।।

कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है-अर्थात् वह धान उपजता है।

आंक से कोदो, नीम जवा।
गाड़र गेहूं बेर चना।।

यदि मदार खूब फूलता है तो कोदो की फसल अच्छी है। नीम के पेड़ में अधिक फूल-फल लगते है तो जौ की फसल, यदि गाड़र (एक घास जिसे खस भी कहते हैं) की वृद्धि होती है तो गेहूं बेर और चने की फसल अच्छी होती है।

आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।

जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।

आद्रा बरसे पुनर्वसुजाय,
दीन अन्न कोऊ न खाय।।

यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।

आस-पास रबी बीच में खरीफ।
नोन-मिर्च डाल के, खा गया हरीफ।।

खरीफ की फसल के बीच में रबी की फसल अच्छी नहीं होती।

अर्थ के साथ कहावतें:-

यहां हम महाकवि घाघ की कुछ कहावतें व उनका अर्थ प्रस्तुडत कर रहे हैं :

सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।

अर्थात् यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है।

किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

अर्थात् यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।

रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।

अर्थात् यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।

उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।

अर्थात् उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।

पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।

अर्थात् पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।

आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।

अर्थात् जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।दरअसल कृषक कवि घाघ ने अपने अनुभवों से जो निष्कोर्ष निकाले हैं, वे किसी भी मायने में आधुनिक मौसम विज्ञान की निष्पतत्तियों से कम उपयोगी नहीं हैं।

उदाहरण-

(i) “आषाढ़ मास पूनो दिवस, बदल घेरे चन्द्र,
तो भड्डरी जोषी कहें, होवे परम आनंद”।

अर्थात्, यदि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा बादलों से ढाका रहे तो उस वर्ष अच्छी वर्षा होगी.

(ii) ” सावन मास बहे पुरवाई, बैल बेच खरीदो गाई “।

यानी, यदि सावन मास में पूर्व हवा बहे तो बारिश की संभावना कम है।। 

Sunday, April 14, 2019


नमस्कार जय भीम जय भारत
आप और आपके परिवार को अम्बेडकर जयंती की हार्दिक शुभकामनायें 

जैसा कि आप सब को पता होगा कि आज महापुरुष भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी का जन्मदिवस है। आज सभी देशवासी व दुनिया भर के लोग उनकी जयंती को धूमधाम से मना रहे हैं ।

मैं ऐसे महापुरुष को कोटि-कोटि नमन और प्रणाम करता हूं । आप सभी को उनके जन्मदिन दिवस की बहुत बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं।

 मैं संक्षिप्त में उनके बारे में तथा उनके द्वारा किए गए महान कार्यों के बारे में एक छोटा सा लेख प्रस्तुत कर रहा हूं। मैंने इनसे बारे में तथ्य विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किए हैं। यदि कहीं कोई गलती हो तो उसके लिए मैं आप सभी से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं।मैं चाहता हूं आप इसे पढ़े और दूसरे लोगों को भी शेयर करें जिससे इन महापुरुष के बारे में अधिक से अधिक लोगों को पता चले और सभी को उनके महान् विचारों तथा उनके महान् कार्यों से प्रेरणा मिल सके।

भीमराव अम्बेडकर को बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें SYMBOL OF KNOWLEDGE के नाम से पूरी दुनिया भर में जाना जाता है। वे भारतीय अर्थशास्त्री, न्यायवादी, राजनेता, लेखक, दार्शनिक और सामाज सुधारक थे।जाति प्रतिबंधों और अस्पृश्यता जैसे सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में उनका प्रयास उल्लेखनीय रहा।

वे अपने पूरे जीवन में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के लिए लड़े। उन्हें जवाहरलाल नेहरू जी की कैबिनेट में भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। 1990 में, अम्बेडकर जी के मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जी का प्रारंभिक जीवन:-

भीमराव अम्बेडकर जी, भीमबाई के पुत्र थे और उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू सेना छावनी, केंद्रीय प्रांत सांसद महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में एक सूबेदार थे। 1894 में उनके पिता के सेवा-निवृत्ति के बाद वो अपने पुरे परिवार के साथ सातारा चले गए। चार साल बाद, अम्बेडकर जी के मां का निधन हो गया और फिर उनकी चाची ने उनकी देखभाल की। बाबा साहेब अम्बेडकर के दो भाई बलराम और आनंद राव और दो बहन मंजुला और तुलसा थी है और सभी बच्चों में से केवल अम्बेडकर उच्च विद्यालय गए थे। उनकी मां की मृत्यु हो जाने के बाद, उनके पिता ने फिर से विवाह किया और परिवार के साथ बॉम्बे चले गए। 15 साल की उम्र में अम्बेडकर जी ने रामाबाई जी से शादी की।

उनका जन्म गरीब दलित जाति परिवार में हुआ था जिसके कारण उन्हें बचपन में जातिगत भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। उनके परिवार को उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा अछूत माना जाता था। अम्बेडकर जी के पूर्वज तथा उनके पिता ब्रिटिश ईस्ट इंडियन आर्मी में लंबे समय तक कार्य किया था। अम्बेडकर जी अस्पृश्य स्कूलों में भाग लेते थे, लेकिन उन्हें शिक्षकों द्वारा महत्व नहीं दिया जाता था।

उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त समाज के उच्च वर्गों से अलग, कक्षा के बाहर बैठाया जाता था, यहां तक ​​कि जब उन्हें पानी पीना होता था, तब उन्हें चपरासी द्वारा ऊंचाई से पानी डाला जाता था क्योंकि उन्हें पानी और उसके बर्तन को छूने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने इसे अपने लेखन 'चपरासी नहीं तो पानी नहीं' में वर्णित किया है। अम्बेडकर जी को आर्मी स्कूल के साथ-साथ हर जगह समाज द्वारा अलगाव और अपमान का सामना करना पड़ा।

डॉ भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा:-

वह एकमात्र दलित व्यक्ति थे जो मुंबई में एल्फिंस्टन हाई स्कूल में पढ़ने के लिए गये थे। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1908 में एल्फिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी सफलता दलितो के लिए जश्न मनाने का कारण था क्योंकि वह ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे। 1912 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की। उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ द्वारा स्थापित योजना के तहत बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति मिली और अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए उन्होंने न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया।

जून 1915 में उन्होंने अर्थशास्त्र के साथ-साथ इतिहास, समाजशास्त्र, दर्शन और राजनीति जैसे अन्य विषयों में भी मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1916 में वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में गए और अपने शोध प्रबंध पर काम किये "रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान", उसके बाद 1920 में वो इंग्लैंड गए वहां उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की डिग्री मिली और 1927 में उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल किया।

उनका विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान:-

भारत रत्न डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में  महत्वपूर्ण योगदान दिया,

 उनमें से मुख्य निम्‍नलिखित हैं :-

सामाजिक एवं धार्मिक योगदान:

मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नाशिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये।
बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था. 1924) के जरिए अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया।

सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्‍स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की।

बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्‍थापित कर अपने अंतिम ग्रंथ ‘‘द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा‘‘ के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।

संविधान तथा राष्ट्र निर्माण में योगदान:-

जात पांत तोडक मंडल (वर्ष 1937) लाहौर, के अधिवेशन के लिये तैयार अपने अभिभाषण को ‘‘जातिभेद निर्मूलन‘‘ नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्या, अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया।

हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक, संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए वह जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे।

आर्थिक, वित्तीय और प्रशासनिक योगदान:-

भारत में रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया की स्थापना डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित शोध ग्रंथ ‘‘रूपये की समस्या-उसका उदभव तथा उपाय‘‘ और ‘‘भारतीय चलन व बैकिंग का इतिहास‘‘ ग्रन्थों तथा ‘‘हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष उनकी साक्ष्य‘‘ के आधार पर 1935 में हुई।
उनके दूसरे शोध ग्रंथ ‘‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास‘‘ के आधार पर देश में वित्त आयोग की स्थापना हुई।

कृषि में सहकारी खेती के द्वारा पैदावार बढाना, सतत विद्युत और जल आपूर्ति करने का उपाय बताया।
औद्योगिक विकास, जलसंचय, सिंचाई, श्रमिक और कृषक की उत्पादकता और आय बढाना, सामूहिक तथा सहकारिता से प्रगत खेती करना, जमीन के राज्य स्वामित्व तथा राष्ट्रीयकरण से सर्वप्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी गणराज्य की स्थापना करना।
सन 1945 में उन्होंने महानदी का प्रबंधन की बहुउददे्शीय उपयुक्तता को परख कर देश के लिये जलनीति तथा औद्योगिकरण की बहुउद्देशीय आर्थिक नीतियां जैसे नदी एवं नालों को जोड़ना, हीराकुण्ड बांध, दामोदर घाटी बांध, सोन नदी घाटी परियोजना, राष्ट्रीय जलमार्ग, केन्द्रीय जल एवं विद्युत प्राधिकरण बनाने के मार्ग प्रशस्त किये।

सन 1944 में प्रस्तावित केन्द्रिय जल मार्ग तथा सिंचाई आयोग के प्रस्ताव को 4 अप्रैल 1945 को वाइसराय द्वारा अनुमोदित किया गया तथा बड़े बांधोंवाली तकनीकों को भारत में लागू करने हेतु प्रस्तावित किया।
उन्होंने भारत के विकास हेतु मजबूत तकनीकी संगठन का नेटवर्क ढांचा प्रस्तुत किया।
उन्होंने जल प्रबंधन तथा विकास और नैसर्गिक संसाधनों को देश की सेवा में सार्थक रुप से प्रयुक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया।

उन्‍होंने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष 11 महीने और 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार कर 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पध्दति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

वर्ष 1951 में महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधेयक पारित करवाने में प्रयास किया और पारित न होने पर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया।

वर्ष 1955 में अपना ग्रंथ ‘‘भाषाई राज्यों पर विचार‘‘ प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 वर्षों बाद कुछ प्रदेशों में साकार हुआ।

निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बडे आकार के राज्यों को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर व ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त तथा राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीति बनाई।

शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं श्रम कल्याण:-

वायसराय की कौंसिल में श्रम मंत्री की हैसियत से श्रम कल्याण के लिए श्रमिकों की 12 घण्टे से घटाकर 8 घण्टे कार्य-समय, समान कार्य समान वेतन, प्रसूति अवकाश, संवैतनिक अवकाश, कर्मचारी राज्य बीमा योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 बनाना, मजदूरों एवं कमजोर वर्ग के हितों के लिए तथा सीधे सत्ता में भागीदारी के लिए स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन कर 1937 के मुम्बई प्रेसिडेंसी चुनाव में 17 में से उन्‍होंने 15 सीटें जीतीं।

कर्मचारी राज्य बीमा के तहत स्वास्थ्य, अवकाश, अपंग-सहायता, कार्य करते समय आकस्मिक घटना से हुये नुकसान की भरपाई करने और अन्य अनेक सुरक्षात्मक सुविधाओं को श्रम कल्याण में शामिल किया।

कर्मचारियों को दैनिक भत्ता, अनियमित कर्मचारियों को अवकाश की सुविधा, कर्मचारियों के वेतन श्रेणी की समीक्षा, भविष्य निधि, कोयला खदान तथा माईका खनन में कार्यरत कर्मियों को सुरक्षा संशोधन विधेयक सन 1944 में पारित करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सन 1946 में उन्होंने निवास, जल आपूर्ति, शिक्षा, मनोरंजन, सहकारी प्रबंधन आदि से श्रम कल्याण नीति की नींव डाली तथा भारतीय श्रम सम्मेलन की शुरूआत की जो अभी निरंतर जारी है, जिसमें प्रतिवर्ष मजदूरों के ज्वलंत मुद्दों पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति में चर्चा होती है और उसके निराकरण के प्रयास किये जाते है।

श्रम कल्याण निधि के क्रियान्वयन हेतु सलाहकार समिति बनाकर उसे जनवरी 1944 में अंजाम दिया।
भारतीय सांख्यिकी अधिनियम पारित कराया ताकि श्रम की दशा, दैनिक मजदूरी, आय के अन्य स्रोत, मुद्रस्‍फीति, ऋण, आवास, रोजगार, जमापूंजी तथा अन्य निधि व श्रम विवाद से संबंधित नियम सम्भव कर दिया।
नवंबर 8, 1943 को उन्होंने 1926 से लंबित भारतीय श्रमिक अधिनियम को सक्रिय बनाकर उसके तहत भारतीय श्रमिक संघ संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया और श्रमिक संघ को सख्ती से लागू कर दिया।
स्वास्थ्य बीमा योजना, भविष्य निधि अधिनियम, कारखाना संशोधन अधिनियम, श्रमिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और विधिक हडताल के अधिनियमों को श्रमिकों के कल्याणार्थ निर्माण किया।

अपने बचपन की कठिनाइयों और गरीबी के बावजूद भारत रत्न बाबा साहब डॉ बीआर अम्बेडकर जी ने अपने प्रयासों और समर्पण के साथ अपनी पीढ़ी को शिक्षित बनने के लिए आगे बढ़ते रहे। वे विदेशों में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।

मैं आपसे हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि यदि आपको इन महापुरुष भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के बारे में यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें और अपनी अनमोल राय तथा प्रतिक्रिया दे।
भारत रत्न बाबा साहब डॉ.बी.आर.अम्बेडकर के बारे में 25 ऐसी बाते जो उनको महान बनाती है,शायद ही ये गौरव किसी दूसरे भारतीय व्यक्ति को प्राप्त है।
 
भारत रत्न डॉ.भीमराव अंबेडकर को बाबासाहेब, डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम से जाना जाता है।उनका जन्म 14 अप्रैल,1891 को महू के एक गरीब अछूत परिवार में हुआ था और 6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया था।

1. डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर अपने माता-पिता की 14 वीं और अंतिम संतान थे।

2. डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर का असली नाम अंबावडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक, महादेव अम्बेडकर ने उन्हें स्कूल के रिकॉर्ड में अम्बेडकर उपनाम दिया।

3. डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट (पीएचडी) की डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।

4. डॉ.अंबेडकर एकमात्र भारतीय हैं जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।

5. भारतीय तिरंगे में "अशोक चक्र" को जगह देने का श्रेय भी डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर को जाता है।

6. नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो.अमर्त्य सेन ने अर्थशास्त्र में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को अपना पिता माना।

7. मध्य प्रदेश और बिहार के बेहतर विकास के लिए, बाबासाहेब ने 50 के दशक में इन राज्यों के विभाजन का प्रस्ताव दिया था, लेकिन 2000 के बाद ही मध्य प्रदेश और बिहार को विभाजित करके छत्तीसगढ़ और झारखंड का गठन किया गया था।

8. बाबासाहेब की निजी लाइब्रेरी "राजगीर" में 50,000 से अधिक किताबें थीं और यह दुनिया की सबसे बड़ी निजी लाइब्रेरी थी।

9. डॉ.बाबासाहेब द्वारा लिखित पुस्तक "वेटिंग फॉर ए वीजा" कोलंबिया विश्वविद्यालय में एक पाठ्यपुस्तक है। कोलंबिया विश्वविद्यालय ने 2004 में दुनिया के शीर्ष 100 विद्वानों की सूची बनाई और उस सूची में पहला नाम डॉ। भीमराव अंबेडकर का था। अम्बेडकर और संविधान

10. डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर 64 विषयों में मास्टर थे। उन्हें हिंदी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, फारसी और गुजराती जैसी 9 भाषाओं का ज्ञान था। इसके अलावा, उन्होंने लगभग 21 वर्षों तक दुनिया के सभी धर्मों का तुलनात्मक तरीके से अध्ययन किया।

11.लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में, बाबासाहेब ने सिर्फ 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की। इसके लिए उन्होंने एक दिन में 21 घंटे पढ़ाई की।

12. डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपने 8,50,000 समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ली, क्योंकि यह दुनिया में सबसे बड़ा धर्मांतरण था।

13. "महंत वीर चंद्रमणि", एक महान बौद्ध भिक्षु जिन्होंने बाबासाहेब को बौद्ध धर्म की शुरुआत की, उन्हें "इस युग का आधुनिक बुद्ध" कहा।

14. बाबासाहेब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से "डॉक्टर ऑल साइंस" नामक एक मूल्यवान डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। कई बुद्धिमान छात्रों ने इसके लिए प्रयास किया है, लेकिन वे अब तक सफल नहीं हुए हैं।

15. दुनिया भर में, नेता के नाम पर लिखे गए अधिकांश गीत और किताबें डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर हैं।

16. गवर्नर लॉर्ड लिनलिथगो और महात्मा गांधी का मानना ​​था कि बाबासाहेब 500 स्नातकों और हजारों विद्वानों से अधिक बुद्धिमान हैं।

17. बाबासाहेब दुनिया के पहले और एकमात्र सत्याग्रही थे, जिन्होंने पीने के पानी के लिए सत्याग्रह किया था।

18. 1954 में, काठमांडू, नेपाल में आयोजित "विश्व बौद्ध परिषद" में बौद्ध भिक्षुओं ने डॉ। बाबासाहेब अंबेडकर को बौद्ध धर्म का सर्वोच्च पद "बोधिसत्व" दिया था। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक "द बुद्ध एंड द धम्मा" भारतीय बौद्धों का "धर्मग्रंथ" है।

19. डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने तीन महापुरुषों, भगवान बुद्ध, संत कबीर और महात्मा फुले को अपना "प्रशिक्षक" माना था।

20. दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिमा बाबासाहेब की है। उनकी जयंती भी पूरे विश्व में मनाई जाती है।

21. बाबा साहेब पिछड़े वर्ग के पहले वकील थे।और पिछड़े लोगो को अधिकार देने के लिए आंदोलन चलाया था।

22. "द मेकर्स ऑफ द यूनिवर्स" नामक वैश्विक सर्वेक्षण के आधार पर पिछले 10 हजार वर्षों के शीर्ष 100 मानवतावादी लोगों की एक सूची ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई थी, जिसमें चौथा नाम डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर का था।

23. बाबासाहेब अम्बेडकर ने वर्तमान समय में चारों तरफ चर्चा हो रही विमुद्रीकरण के बारे में "द प्रॉब्लम ऑफ रुपी-इट्स ओरिजिन एंड इट्स सोल्यूशन" पुस्तक में कई सुझाव दिए हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक में वर्णन किया है कि "अगर किसी भी देश को काले धन और नकली मुद्रा को खत्म करना है, तो हर 10 साल बाद देश की मुद्रा को विमुद्रीकृत किया जाना चाहिए।"

24. दुनिया में हर जगह, बुद्ध की बंद आंखों वाली मूर्तियां और पेंटिंग दिखाई देती हैं, लेकिन बाबासाहेब, जो एक अच्छे चित्रकार भी थे, ने बुद्ध की पहली पेंटिंग बनाई जिसमें बुद्ध की आंखें खोली गईं।

25. बाबासाहेब की पहली प्रतिमा का निर्माण वर्ष 1950 में किया गया था, जब वे जीवित थे और यह प्रतिमा कोल्हापुर शहर में स्थापित की गई थी।


आप सबका शुभचिंतक

    गोपा राम पुनङ
भारतीय रेलवे रामदेवरा

Sunday, February 24, 2019

*जानिए IPC में धाराओ का मतलब …..*

*धारा 307* = हत्या की कोशिश
*धारा 302* = हत्या का दंड
*धारा 376* = बलात्कार
*धारा 395* = डकैती
*धारा 377* = अप्राकृतिक कृत्य
*धारा 396* = डकैती के दौरान हत्या
*धारा 120* = षडयंत्र रचना
*धारा 365* = अपहरण
*धारा 201* = सबूत मिटाना
*धारा 34* = सामान आशय
*धारा 412* = छीनाझपटी
*धारा 378* = चोरी
*धारा 141* = विधिविरुद्ध जमाव
*धारा 191* = मिथ्यासाक्ष्य देना
*धारा 300* = हत्या करना
*धारा 309* = आत्महत्या की कोशिश
*धारा 310* = ठगी करना
*धारा 312* = गर्भपात करना
*धारा 351* = हमला करना
*धारा 354* = स्त्री लज्जाभंग
*धारा 362* = अपहरण
*धारा 415* = छल करना
*धारा 445* = गृहभेदंन
*धारा 494* = पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0
*धारा 499* = मानहानि
*धारा 511* = आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।
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हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।

तो चलिए ऐसे ही कुछ
*पांच रोचक फैक्ट्स* की जानकारी आपको देते है,
जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.

*(1) शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-@@@.
कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.

*(2.) सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-

पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.

*(3) कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-

इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.

*(4) गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.

*(5) पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*

आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम *(6)*महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.

*इन रोचक फैक्ट्स को हमने आपके लिए ढूंढ निकाला है*.

ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है. हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहोत सी रोचक बाते आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन में उपयोगी हो।

*इस मैसेज को आगे भी भेजना और अपने पास सहेज कर रखना, आपके कभी भी ये अधिकार काम आ सकते हैं।*

✍अधिकार✍.


सारे अनुच्छेद एक साथ Indian Constitution Articles:-
***********
*अनुच्छेद 1* :- संघ कानाम और राज्य क्षेत्र
*अनुच्छेद 2* :- नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
*अनुच्छेद 3* :- राज्य का निर्माण तथा सीमाओं या नामों मे
परिवर्तन
*अनुच्छेद 4* :- पहली अनुसूचित व चौथी अनुसूची के संशोधन तथा दो और तीन के अधीन बनाई गई विधियां
*अच्नुछेद 5* :- संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
*अनुच्छेद 6* :- भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता
*अनुच्छेद 7* :-पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता
*अनुच्छेद 8* :- भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों का नागरिकता
*अनुच्छेद 9* :- विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर नागरिकता का ना होना
*अनुच्छेद 10* :- नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
*अनुच्छेद 11* :- संसद द्वारा नागरिकता के लिए कानून का विनियमन
*अनुच्छेद 12* :- राज्य की परिभाषा
*अनुच्छेद 13* :- मूल अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाली विधियां
*अनुच्छेद 14* :- विधि के समक्ष समानता
*अनुच्छेद 15* :- धर्म जाति लिंग पर भेद का प्रतिशेध
*अनुच्छेद 16* :- लोक नियोजन में अवसर की समानता
*अनुच्छेद 17* :- अस्पृश्यता का अंत
*अनुच्छेद 18* :- उपाधीयों का अंत
*अनुच्छेद 19* :- वाक् की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 20* :- अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण

*अनुच्छेद 21* :-प्राण और दैहिक स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 21 क* :- 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार
*अनुच्छेद 22* :- कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से सरंक्षण
*अनुच्छेद 23* :- मानव के दुर्व्यापार और बाल आश्रम
*अनुच्छेद 24* :- कारखानों में बालक का नियोजन का प्रतिशत
*अनुच्छेद 25* :- धर्म का आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता

*अनुच्छेद 26* :-धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 29* :- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
*अनुच्छेद 30* :- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
*अनुच्छेद 32* :- अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
*अनुच्छेद 36* :- परिभाषा
*अनुच्छेद 40* :- ग्राम पंचायतों का संगठन
*अनुच्छेद 48* :- कृषि और पशुपालन संगठन
*अनुच्छेद 48क* :- पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
*अनुच्छेद 49:-* राष्ट्रीय स्मारक स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
*अनुछेद. 50* :- कार्यपालिका से न्यायपालिका का प्रथक्करण
*अनुच्छेद 51* :- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
*अनुच्छेद 51क* :- मूल कर्तव्य
*अनुच्छेद 52* :- भारत का राष्ट्रपति
*अनुच्छेद 53* :- संघ की कार्यपालिका शक्ति
*अनुच्छेद 54* :- राष्ट्रपति का निर्वाचन
*अनुच्छेद 55* :- राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीती
*अनुच्छेद 56* :- राष्ट्रपति की पदावधि
*अनुच्छेद 57* :- पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
*अनुच्छेद 58* :- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताए
*अनुच्छेद 59* :- राष्ट्रपति पद के लिए शर्ते
*अनुच्छेद 60* :- राष्ट्रपति की शपथ
*अनुच्छेद 61* :- राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
*अनुच्छेद 62* :- राष्ट्रपति पद पर व्यक्ति को भरने के लिए निर्वाचन का समय और रीतियां
*अनुच्छेद 63* :- भारत का उपराष्ट्रपति
*अनुच्छेद 64* :- उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
*अनुच्छेद 65* :- राष्ट्रपति के पद की रिक्त पर उप राष्ट्रपति के कार्य
*अनुच्छेद 66* :- उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
*अनुच्छेद 67* :- उपराष्ट्रपति की पदावधि
*अनुच्छेद 68* :- उप राष्ट्रपति के पद की रिक्त पद भरने के लिए निर्वाचन
*अनुच्छेद69* :- उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ

*अनुच्छेद 70* :- अन्य आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
*अनुच्छेद 71*. :- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित
विषय
*अनुच्छेद 72* :-क्षमादान की शक्ति
*अनुच्छेद 73* :- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
*अनुच्छेद 74* :- राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
*अनुच्छेद 75* :- मंत्रियों के बारे में उपबंध
*अनुच्छेद 76* :- भारत का महान्यायवादी
*अनुच्छेद 77* :- भारत सरकार के कार्य का संचालन
*अनुच्छेद 78* :- राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमंत्री के
कर्तव्य
*अनुच्छेद 79* :- संसद का गठन
*अनुच्छेद 80* :- राज्य सभा की सरंचना

*अनुच्छेद 81* :- लोकसभा की संरचना
*अनुच्छेद 83* :- संसद के सदनो की अवधि
*अनुच्छेद 84* :-संसद के सदस्यों के लिए अहर्ता
*अनुच्छेद 85* :- संसद का सत्र सत्रावसान और विघटन
*अनुच्छेद 87* :- राष्ट्रपति का विशेष अभी भाषण
*अनुच्छेद 88* :- सदनों के बारे में मंत्रियों और महानयायवादी
अधिकार
*अनुच्छेद
89* :-राज्यसभा का सभापति और उपसभापति
*अनुच्छेद 90* :- उपसभापति का पद रिक्त होना या पद हटाया
जाना
*अनुच्छेद 91* :-सभापति के कर्तव्यों का पालन और शक्ति
*अनुच्छेद 92* :- सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का
संकल्प विचाराधीन हो तब उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 93* :- लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
*अनुचि

त 94* :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना
*अनुच्छेद 95* :- अध्यक्ष में कर्तव्य एवं शक्तियां
*अनुच्छेद 96* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प हो तब
उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 97* :- सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष,उपाध्यक्ष के
वेतन और भत्ते
*अनुच्छेद 98* :- संसद का सविचालय
*अनुच्छेद 99* :- सदस्य द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 100* - संसाधनों में मतदान रिक्तियां के होते हुए भी
सदनों के कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
*अनुच्छेद 108* :- कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
*अनुत्छेद 109* :- धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया
*अनुच्छेद 110* :- धन विधायक की परिभाषा
*अनुच्छेद 111* :- विधेयकों पर अनुमति
*अनुच्छेद 112* :- वार्षिक वित्तीय विवरण
*अनुच्छेद 118* :- प्रक्रिया के नियम
*अनुच्छेद 120* :- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
*अनुच्छेद 123* :- संसद विश्रांति काल में राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति
*अनुच्छेद 124* :- उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
*अनुच्छेद 125* :- न्यायाधीशों का वेतन
*अनुच्छेद 126* :- कार्य कार्य मुख्य न्याय मूर्ति की नियुक्ति
*अनुच्छेद 127* :- तदर्थ न्यायमूर्तियों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 128* :- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
*अनुच्छेद 129* :- उच्चतम न्यायालय का अभिलेख नयायालय होना
*अनुच्छेद 130* :- उच्चतम न्यायालय का स्थान

*अनुच्छेद 131* :- उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
*अनुच्छेद 137* :- निर्णय एवं आदेशों का पुनर्विलोकन
*अनुच्छेद 143* :- उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की
राष्ट्रपति की शक्ति
*अनुच्छेद144* :-सिविल एवं न्यायिक पदाधिकारियों द्वारा
उच्चतम न्यायालय की सहायता
*अनुच्छेद 148* :- भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक
*अनुच्छेद 149* :- नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्य शक्तिया
*अनुच्छेद 150* :- संघ के राज्यों के लेखन का प्रारूप
*अनुच्छेद 153* :- राज्यों के राज्यपाल
*अनुच्छेद 154* :- राज्य की कार्यपालिका शक्ति
*अनुच्छेद 155* :- राज्यपाल की नियुक्ति
*अनुच्छेद 156* :- राज्यपाल की पदावधि
*अनुच्छेद 157* :- राज्यपाल नियुक्त होने की अर्हताएँ
*अनुच्छेद 158* :- राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
*अनुच्छेद 159* :- राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 163* :- राज्यपाल को सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
*अनुच्छेद 164* :- मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
*अनुच्छेद 165* :- राज्य का महाधिवक्ता
*अनुच्छेद 166* :- राज्य सरकार का संचालन
*अनुच्छेद 167* :- राज्यपाल को जानकारी देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य
*अनुच्छेद 168* :- राज्य के विधान मंडल का गठन
*अनुच्छेद 170* :- विधानसभाओं की संरचना
*अनुच्छेद 171* :- विधान परिषद की संरचना
*अनुच्छेद 172* :- राज्यों के विधानमंडल कि अवधी
*अनुच्छेद 176* :- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
*अनुच्छेद 177* सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार
*अनुच्छेद 178* :- विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
*अनुच्छेद 179* :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना या
पद से हटाया जाना
*अनुच्छेद 180* :- अध्यक्ष के पदों के कार्य व शक्ति

*अनुच्छेद 181* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई
संकल्प पारित होने पर उसका पिठासिन ना होना
*अनुच्छेद 182* :- विधान परिषद का सभापति और उपसभापति
*अनुच्छेद 183* :- सभापति और उपासभापति का पद रिक्त होना
पद त्याग या पद से हटाया जाना
*अनुच्छेद 184* :- सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन व शक्ति
*अनुच्छेद 185* :- संभापति उपसभापति को पद से हटाए जाने का
संकल्प विचाराधीन होने पर उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 186* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष सभापति और उपसभापति
के वेतन और भत्ते
*अनुच्छेद 187* :- राज्य के विधान मंडल का सविचाल.
*अनुच्छेद 188* :- सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 189* :- सदनों में मतदान रिक्तियां होते हुए भी साधनों का कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
*अनुच्छेद 199* :- धन विदेश की परिभाषा
*अनुच्छेद 200* :- विधायकों पर अनुमति
*अनुच्छेद 202* :- वार्षिक वित्तीय विवरण
*अनुच्छेद 213* :- विध
ानमंडल में अध्यादेश सत्यापित करने के
राज्यपाल की शक्ति
*अनुच्छेद 214* :- राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
*अनुच्छेद 215* :- उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
*अनुच्छेद 216* :- उच्च न्यायालय का गठन
*अनुच्छेद 217* :- उच्च न्यायालय न्यायाधीश की नियुक्ति
पद्धति शर्तें
*अनुच्छेद 221* :- न्यायाधीशों का वेतन
**
*अनुच्छेद 222* :- एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में
न्यायाधीशों का अंतरण
*अनुच्छेद 223* :- कार्यकारी मुख्य न्याय मूर्ति के नियुक्ति
*अनुच्छेद 224* :- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 226* :- कुछ रिट निकालने के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति
*अनुच्छेद 231* :- दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना
*अनुच्छेद 2

33* :- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 241* :- संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च-न्यायालय
**
*अनुच्छेद 243* :- पंचायत नगर पालिकाएं एवं सहकारी समितियां
*अनुच्छेद 244* :- अनुसूचित क्षेत्रो व जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
*अनुच्छेद 248* :- अवशिष्ट विधाई शक्तियां
*अनुच्छेद 252* :- दो या अधिक राज्य के लिए सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति
*अनुच्छेद 254* :- संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए गए विधियों में असंगति
*अनुच्छेद 256* :- राज्यों की और संघ की बाध्यता
*अनुच्छेद 257* :- कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण
*अनुच्छेद 262* :- अंतर्राज्यक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी
विवादों का न्याय निर्णय
*अनुच्छेद 263* :- अंतर्राज्यीय विकास परिषद का गठन
*अनुच्छेद 266* :- संचित निधी
*अनुच्छेद 267* :- आकस्मिकता निधि
*अनुच्छेद 269* :- संघ द्वारा उद्ग्रहित और संग्रहित किंतु राज्यों
को सौपे जाने वाले कर
*अनुच्छेद 270* :- संघ द्वारा इकट्ठे किए कर संघ और राज्यों के
बीच वितरित किए जाने वाले कर
*अनुच्छेद 280* :- वित्त आयोग
*अनुच्छेद 281* :- वित्त आयोग की सिफारिशे
*अनुच्छेद 292* :- भारत सरकार द्वारा उधार लेना
*अनुच्छेद 293* :- राज्य द्वारा उधार लेना
&अनुच्छेद 300 क* :- संपत्ति का अधिकार
*अनुच्छेद 301* :- व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 309* :- राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों
*अनुच्छेद 310* :- संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि
*अनुच्छेद 313* :- संक्रमण कालीन उपबंध
*अनुच्छेद 315* :- संघ राज्य के लिए लोक सेवा आयोग
*अनुच्छेद 316* :- सदस्यों की नियुक्ति एवं पदावधि
*अनुच्छेद 317* :- लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया
जाना या निलंबित किया जाना
*अनुच्छेद 320* :- लोकसेवा आयोग के कृत्य
*अनुच्छेद 323 क* :- प्रशासनिक अधिकरण
*अनुच्छेद 323 ख* :- अन्य विषयों के लिए अधिकरण
*अनुच्छेद 324* :- निर्वाचनो के अधिक्षण निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
*अनुच्छेद 329* :- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय के
हस्तक्षेप का वर्णन
*अनुछेद 330* :- लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये स्थानो का आरणण
*अनुच्छेद 331* :- लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का
प्रतिनिधित्व
*अनुच्छेद 332* :- राज्य के विधान सभा में अनुसूचित जाति और
अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
*अनुच्छेद 333* :- राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय
समुदाय का प्रतिनिधित्व
*अनुच्छेद 343* :- संघ की परिभाषा
*अनुच्छेद 344* :- राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
*अनुच्छेद 350 क* :- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की
सुविधाएं
*अनुच्छेद 351* :- हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश
*अनुच्छेद 352* :- आपात की उदघोषणा का प्रभाव
*अनुछेद 356* :- राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की
दशा में उपबंध
*अनुच्छेद 360* :- वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
*अनुच्छेद 368* :- सविधान का संशोधन करने की संसद की
शक्ति और उसकी प्रक्रिया
*अनुच्छेद 377* :- भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के बारे में
*उपबंध*
*अनुच्छेद 378* :- लोक सेवा आयोग के बारे
TOP 30 IMPORTANT NOTE*

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संविधान के किस भाग में अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्धों के प्रावधान हैं? –
*भाग 21*

वर्तमान में भारतीय संविधान में कुल कितनी अनुसूचियां हैं? –
*12*

संसद का निम्न सदन एवं उच्च सदन है? –
*लोकसभा एवं राज्यसभा*

बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री थे? –
*डॉ. श्रीकृष्ण सिंह*

विधानपरिषद् का सदस्य होने के लिए कम-से-कम कितनी आयु सीमा होनी चाहिए? – *30 वर्ष*

किसी राज्य विधान सभा के सदस्यों की न्यूनतम संख्या कितनी हो सकती है? – *60*

अखिल भारतीय सेवा का गठन कर सकता है? – *संसद*

मतदाताओं के पंजीयन का उत्तरदायित्व किस पर है? – *निर्वाचन आयोग*

मूल संविधान में क्षेत्रीय महत्त्व के 66 विषय राज्य सूची में थे। अब उनकी संख्या कितनी है? – *61*

संयुक्त प्रवर समिति में कितने सदस्य होते हैं? – *45*

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त कितने न्यायाधीश का प्रावधान किया गया है? – *30*

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है? – *बिलासपुर*

राज्यपाल राज्य में किसका प्रतिनिधि होता है? – *राष्ट्रपति का*

भारतीय संविधान के किन अनुच्छेदों में राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख है? – *अनुच्छेद 36-51*

राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब पारित किया गया? – *1956 ई.*

भारतीय नागरिकता नहीं प्राप्त की जा सकती है? –
*भारतीय

ा*

राष्ट्रपति किसकी सलाह पर किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति करते है? –
*प्रधानमंत्री*

राज्य का मुख्यमंत्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? –
*विधान सभा*

राज्य विधानमंडल का ऊपरी सदन कौन-सा है? –
*विधान परिषद्*

उस संघ राज्य का नाम बताइए जहाँ निर्वाचित विधानसभा एवं मंत्रिपरिषद् है? –
*पुदुचेरी*

भारतीय संविधान में कितनी भाषाएँ क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं? –
*22*

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की कार्य अवधि होती है? –
*छह वर्ष*

पंचायत समिति का गठन होता है? – *प्रखंड स्तर पर*

भारत में साम्यवाद आधारित दल है? – *CPI*

वर्तमान समय में लोकसभा की 543 सीटों में से कितनी सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं? –
*84*

किस संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा गोवा को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया? –
*56वाँ*

किसी क्षेत्र को अनुसूचित जाति और जनजाति क्षेत्र घोषित करने का अधिकार किसे है? –
*राष्ट्रपति*

स्थायी संसद भारत में कब तक अस्तित्व में रही है? –
*17 अप्रैल, 1952*

भारत के चौथे राष्ट्रपति थे? –
*वी. वी. गिरि*

उपराष्ट्रपति को उसके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व पद से हटाने का अधिकार किसको है? –
*संसद*

संसद का चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी की न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए? –
*25 वर्ष*

राज्यसभा द्वारा लोकसभा को धन विधेयक कितने समय में लौटा दिये जाने चाहिए? –
*14 दिन*

राजनीतिक शब्दावली में ‘शून्यकाल’ का अर्थ है? –
*प्रश्न-उत्तर सत्र*

इन्दिरा गाँधी दूसरी अवधि के लिए प्रधानमंत्री बनी? –
*1980 से 1984 तक*

मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है? –
*राष्ट्रपति*

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने की शक्ति किसके पास है? –
*संसद*

भारत में कुल कितने उच्च न्यायालय हैं? –
*24*

उपराज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? –
*राष्ट्रपति*

विधानपरिषद् के कितने सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष अवकाश ग्रहण करते हैं? –
*1/3*

राजनीति और नीतियों से व्युत्पन्न शब्द ‘इन्द्रधनुषी गठबंधन’ शब्द किसने दिया? –
*पिट रोमनी*

बैंक में धन जमा करके*

भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या है? – *कमल*

मौलिक कर्तव्यों की अवहेलना करने वालों को? –
 *दंड देने की व्यवस्था नहीं है*

संसद के दो क्रमिक अधिवेशनों के बीच अधिकतम कितने समयान्तराल की अनुमति है? – *6 माह*

भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित होने के पात्र बनने के लिए किसी व्यक्ति की आयु पूर्ण होनी चाहिए? – *35 वर्ष*

राष्ट्रपति पद्धति में समस्त कार्यपालिका की शक्तियाँ किसमें निहित होती हैं? – *राष्ट्रपति में*

किस संवैधानिक संशोधन द्वारा अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया? – *55वाँ*

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935 किस पर आधारित था? –
*साइमन कमीशन*

भारतीय संविधान सभा की स्थापना कब हुई? –
*9 दिसम्बर, 1946*

अब तक भारत के संविधान की उद्देशिका में कितनी बार संशोधन किया जा चुका है? – *एक बार*

पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कौन करता है? – *राष्ट्रपति*

विश्व का सबसे बड़ा, लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान किस देश का है? – *भारत*

भारत की संघीय व्यवस्था किस देश की संघीय व्यवस्था से अधिक समानता रखती है? – *कनाडा*

किस राज्य के आरक्षण विधेयक को 9वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है? – *तमिलनाडु*

भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की स्थापना कब हुई? – *मार्च 1954*

*This article is important for your exams*

: *भारतीय संविधान की विशेषताएँ*
*IMPORTANTS OF INDIAN CONSTITUENCY*

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*by (CBEN)*✍
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● भारत का संविधान कैसा है— *लिखित एंव विश्व का सबसे व्यापक संविधान *
● भारतीय संविधन का स्वरूप होता है— *संरचना में संघात्मक *
● भारत में किस प्रकार का शासन व्यवस्था अपनाई गई है—
*ब्रिटिश संसदात्मक प्रणाली*
● भारतीय संविधान का अभिभावक कौन है— *सर्वोच्च न्यायालय*
● भारत के संविधान में संघीय शब्द की जगह किन शब्दों को स्थान दिया गया है— *राज्यों का संघ *
● भारतीय संविधान में कितनी सूचियाँ हैं— *12*
● भारतीय संविधान अपना अधिकार किससे प्राप्त करता है—
*भारतीय जनता से *
● भारत में वैद्य प्रभुसत्ता किस में निहित है—
*संविधान में *
● भारतीय संविधान की संरचना किस प्रकार की है—
*कुछ एकात्मक, कुछ कठोर *
● लिखित संविधान की अवधारणा ने कहाँ जन्म लिया— * फ्रांस *
● अध्यक्षात्मक शासन का उदय सर्वप्रथम कहाँ हुआ—
*संयुक्त राज्य अमेरिका*
● भारतीय संविधान में नागरिकों को कितने मूल अधिकार प्राप्त है—
* 6 *
● भारतीय संघीय व्यवस्था की प्रमुख विशेषता क्या है—
*संविधान की सर्वोच्चता*
● भारतीय संघवाद व्यवस्था की प्रमुख विशेषता क्या है—
*संविधान की सर्वोच्चता*
● भारतीय संघवाद को किसने सहकारी संघवाद कहा—
*जी. ऑस्टिन ने*
● भारत में प्रजातंत्र किस तथ्य पर आधरित है— *जनता को सरकार चनने व बदलने का अधिकार है*

*This article is important for your exams*

*राजनीति विज्ञानं से सम्बंधित परीक्षा में पूछे गये (40) एेसे प्रश्न- जो आगामी प्रतियोगिता परीक्षा जैसे*

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भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की स्थापना कब हुई? –
*मार्च 1954*

समवर्ती सूची में लिखे विषयों पर अधिनियम बनाने का अधिकार किसके पास है? –
*राज्य और संघ*

प्रथम राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के समय देश के राष्ट्रपति कौन थे? –
*डॉ. एस. राधाकृष्णन*

42वें संशोधन द्वारा संविधान के किस अनुच्छेद में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया है? –
*अनुच्छेद-51 A*

वर्तमान में भारतीय संविधान के कुल कितने भाग है? –
*22*

संविधान लागू होने के पश्चात् निम्न में से कौन भारतीय संघ का एक आरक्षित राज्य था? –
*सिक्किम*

संविधान के किस भाग में भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है? –
*भाग-3*

मौलिक अधिकार संविधान के किस भाग में वर्णित है? –
*भाग III*

राज्यसभा की बैठकों का सभापतित्व कौन करता है? –
*उपराष्ट्रपति*

कोई वित्तीय बिल प्रस्तावित हो सकता है? –
*केवल लोकसभा में*

भारत में किसकी स्वीकृति के बिना कोई भी सरकारी खर्चा नहीं किया जा सकता? –
*संसद*

मंत्रिपरिषद् में कितने स्तर के मंत्री होते हैं? –
*3*

आमतौर पर भारत के प्रधानमंत्री होते हैं? –
*लोकसभा का सदस्य*

भारत सरकार का प्रमुख विधि अधिकारी कौन है? –
*भारत के महान्यायवादी*

भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश कितनी उम्र तक अपने पद पर बना रह सकता है? –
*65 वर्ष*

किन राज्यों में साझा उच्च न्यायालय है? –
*महाराष्ट्र व गोव

*प्रमुख क्रांतियां*


🎾 हरित क्रांति -- खाद्यान्न उत्पादन
🍼 श्वेत क्रांति -- दुग्ध उत्पादन
🐬 नीली क्रांति -- मत्स्य उत्पादन
🎾 भूरी क्रांति -- उर्वरक उत्पादन
🐓 रजत क्रांति -- अंडा उत्पादन
🌾 पीली क्रांति -- तिलहन उत्पादन
🌵 कृष्ण क्रांति -- बायोडीजल उत्पादन. 
🍒 लाल क्रांति -- टमाटर/मांस उत्पादन
🐋 गुलाबी क्रांति -- झींगा मछली उत्पादन
🍟 बादामी क्रांति -- मासाला उत्पादन
🍊 सुनहरी क्रांति -- फल उत्पादन
🌊 अमृत क्रांति -- नदी जोड़ो परियोजनाएं
🏨 धुसर/स्लेटी क्रांति-- सीमेंट
🍈 गोल क्रांति-- आलु
🌈 इंद्रधनुषीय क्रांति-- सभी क्रांतियो पर निगरानी रखने हेतु
🌅 सनराइज/सुर्योदय क्रांति-- इलेक्ट्रॉनिक उधोग के विकास के हेतु
🏌 गंगा क्रांति-- भ्रष्टाचार के खिलाफ सदाचार पैदा करने हेतु (जोहड़े वाले बाबा/वाटर मैन ऑफ इंडिया/राजेन्द्र सिंह )द्वारा
🎾 सदाबहार क्रांति-- जैव तकनीकी
🌭 सेफ्रॉन क्रांति-- केसर उत्पादन से
🛍 स्लेटी/ग्रे क्रांति--उर्वरको के उत्पादन से
🎋 हरित सोना क्रांति-- -- बाँस उतपादन से
🍡 मूक क्रांति-- मोटे अनाजों के उत्पादन से
🍠 परामनी क्रांति-- भिन्डी उत्पादन से
☕ ग्रीन गॉल्ड क्रांति-- चाय उत्पादन से
👳‍♀ खाद्द श्रंखला क्रांति-- भारतीय कृषकों की 2020 तक आमदनी को दुगुना करने से
🎾 खाकी क्रांति-- चमड़ा उत्पादन से
🌾 व्हाइट गॉल्ड क्रांति-- कपास उत्पादन से (तीसरी) क्रांति)
🚧 N.H.क्रान्ति- स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से

*फसलो के उपनाम राजा*
🎾 दालो का राजा -- चना
🍑 फलो का राजा -- आम
🌹 फुलो का राजा -- गुलाब
🌶 मसालो का राजा/प्रकृति का आश्चर्य -- मिर्च
🎾 अनाजों का राजा -- चावल
🎾 मोटे अनाजों का राजा-- ज्वार
🍎 शितोष्ण फलो का राजा -- सेब
🌭 सुखे मेवो का राजा -- बादाम
🎾 चारे कि फसलों का राजा --बरसीम
🎾 जंगो का राजा -- टीक

*फसलों के उपनाम रानी*
🌭 दालों कि रानी -- मटर
🎾 फलों कि रानी -- लीची
🌸 फुलों कि रानी -- ग्लोडियोलस
🍟 मसालों कि रानी -- इलायची
🌽 अनाजों कि व्रानी -- मक्का


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 ✍Gopsa punar 👈

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Wednesday, December 26, 2018

💢 घरेलू उपाय
💢जुकाम से नाक बंद हो जाना : ठंड या बारिश के मौसम में जुकाम के कारण नाक बंद हो जाती है। ऐसे मौसम में यह समस्या एक आम बात है। इससे बचाव के लिए अजवाय को भून कर पीस ले। उसे एक सूती कपड़े में बांधकर इनहेलर बना लें। इसे बच्चों को सुघांते रहे इससे निकलने वाली सुगंध नाक को खोलने में मदद करती है।

💢रात को सोते समय रोज आंवले का चूर्ण शहद या पानी से लेने से पेट साफ रहता है और आंखों से संबंधित रोगों में लाभ मिलता है। सूखे आंवले को शुद्ध घी में तलकर पीस लें, इस चूर्ण का सिर पर लेप करने से नकसीर में लाभ मिलता है।

💢पपीते के छिलकों को सुखाकर और पीसकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण में ग्लिसीरीन मिलाकर दिन में दो बार फटी हुई एड़ियों में लगाने से बहुत जल्दी फायदा होता है।

💢भोजन करने से पहले दो या तीन पके टमाटरों को काटकर उसमें पिसी हुई कालीमिर्च, सेंधा नमक एवं हरा धनिया मिलाकर खाएं। इससे चेहरे पर लाली आती है व पौरूष शक्ति बढ़ती है।

💢पेट में कीड़े होने पर सुबह खाली पेट टमाटर में पिसी हुई कालीमिर्च लगाकर खाने से लाभ होता है।या उसमे हींग का छौंका लगा दीजिये ,अब उसे पी जाइए, सारे कीड़े मर जायेंगे.

💢बालों को स्वस्थ रखने और उनको बीमारी इत्यादि से बचाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे ना सिर्फ आपके बालों में चमक आएगी बल्कि आपके बाल किसी भी होने वाली बीमारी से भी बच पाएंगे।

💢त्वचा पर कहीं भी फुंसी उठने पर, काली मिर्च पानी के साथ पत्थर पर घिस कर अनामिका अंगुली से सिर्फ फुंसी पर लगाने से फुंसी बैठ जाती है।

💢सिरदर्द होने पर दालचीनी को पानी के साथ महीन पीसकर माथे पर पतला लेप कर लगा लीजिए। लेप सूख जाने पर उसे हटा लीजिए। 3-4 लेप लगाने पर सिरदर्द होना बंद हो जाएगा।

💢चेहरे की झांई- कुछ दिनों तक चेहरे पर मटर के आटे का उबटन मलते रहने से झांई और धब्बे समाप्त हो जाते है।

💢आंवला का सेवन करने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है।

💢सुबह नाश्ते में आंवले का मुरब्बा खाने आपका शरीर स्वस्थ बना रहता है।
🌀टेंशन .....
💢जब आप घर में हों तो बच्चों के साथ खूब मस्ती करें, उछल-कूद करें, यह क्रिया आपको एनर्जी देगी और मन प्रफुल्लित रखेगी। वैसे भी बच्चों के साथ सारे टेंशन दूर हो जाते हैं।

🌀मुँहासे ......

💢हल्दी, बेसन का उबटन बनाकर चेहरे पर लगाने से भी मुँहासे दूर होते हैं।

💢नीम की पत्तियों के चूर्ण में मुलतानी मिट्टी और गुलाबजल मिलाकर पेस्ट बना लें व इसे चेहरे पर लगाएँ।

💢नीम की जड़ को पीसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे ठीक हो जाते हैं।

💢काली मिट्टी को घिसकर मुँहासों पर लगाने से भी वे नष्ट हो जाते हैं।

Friday, December 21, 2018

कागभुशुण्डिजी ने ज्ञान भक्ति से संबंधित बहुत सारी बातें बताईं। गरुड़ जी प्रसन्न हो गए। कुछ बातें जो सूक्ष्मता से कही गईं थी उनका विस्तार जानने की इच्छा से गरुड़जी ने सात प्रश्नों में अपनी जिज्ञासा प्रगट की। इनमें लगभग सभी प्रश्नों के उत्तर मानस में कई बार कहे जा चुके हैं। फिर भी संदर्भ पाकर एक बार फिर भुशुण्डिजी के मुख से कहलवाना है।

 गरुड जी ने प्रश्न संबन्धित जिज्ञासा प्रगट करने के पहले एक शिष्टाचार के नाते पहले तो भुशुण्डिजी की प्रसंशा की, फिर स्वयं को एक सेवक के स्तर पर रख कर दीनता भी प्रदर्शित की। यह सदाचार है। गरुड़जी पक्षिराज हैं।एक कौए के सामने दीनता का प्रदर्शन करने से इस आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में उनकी हीनता नहीं वल्कि कृतज्ञता और सम्मान का भाव प्रगट होता है,जो होना चाहिए।

 गरुड़जी का पहला प्रश्न है कि सबसे दुर्लभ और श्रेष्ठ शरीर कौन सा है। (एक पक्षी दूसरे पक्षी से पूछ रहा है)। दूसरा प्रश्न है कि सबसे बड़ा दुख क्या है ? तीसरा प्रश्न है कि सबसे बड़ा सुख क्या है? चौथा प्रश्न है कि संत और असंत में भेद क्या हैं ? असली पहचान कैसे की जाय ? बाहरी आडम्बर तो बहका देता है।

  गरुड़जी का पॉंचवॉं प्रश्न है कि श्रुतियों में वर्णित सबसे बड़ा पुण्य क्या है? छटवॉं प्रश्न है कि सबसे बड़ा पाप क्या है? और सातवॉं अंतिम प्रश्न है कि मानस रोग क्या हैं?

 योग्य जिज्ञासु पाकर वक्ता को कितनी प्रसन्नता होती है, इस प्रकरण में इसका बिंम्ब है। प्रश्नों की श्रंखला सुन कर भुशुण्डि जी तत्काल ही एक सॉंस में क्रम से उत्तर देते हैं और कहीं बीच में अल्पविराम भी नहीं लेते।

"नर तन सम नहिं कवनिउ देही":-प्रथम प्रश्न के उत्तर में भुशुण्डि जी कह रहे हैं कि सबसे दुर्लभ तो मनुष्य का शरीर है। (शास्त्रोक्त उदाहरण तो समूह के विद्वान ही दे पाऐंगे, पर हमने ऐसा सुना है कि )सारे चर अचर जीव, देवता से लेकर पशु-कीट-पतंगों तक मनुष्य का ही शरीर चाहते हैं क्योंकि इसी शरीर से स्वर्ग-नर्क-मोक्ष तक की प्राप्ति कर्म के आधार पर होती है। हमें तो मानस की पंक्ति के भगवान राम के शब्द प्रामाणिक लगते हैं:

"बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
 मनुष्य शरीर भी कर्मानुसार ही मिलता है लेकिन इसके लिए पुण्यों के साथ साथ भगवान की कृपा भी चाहिए। "ग्यान विराग भगति सुभ देनी":-

मनुष्य को छोड़ कर जितने भी पशु पक्षी कीट आदि शरीर हैं, सब मात्र भोग योनि हैं। उनमें कर्म स्वातंत्र्य नहीं है। मनुष्य कर्म करने को स्वतंत्र है। उसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए मन बुद्धि भी प्राप्त हैं। मनुष्य प्रकृति में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। उसकी संस्कृति होती है। अन्य योनियों का कोई सांस्कृतिक विकास नहीं होता। मोक्ष प्राप्त करने के लिए ज्ञान, वैराग्य और भक्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए आवश्यक अवयव मन-बुद्धि मनुष्य को ही प्राप्त हैं।

"सो तनु धरि हरि भजहिं न":-मनुष्य शरीर जैसी अमूल्य निधि पाकर भी जो विषयों में ही पड़े रहते हैं, परमात्मा का चिंतन नहीं करते, उनकी बुद्धि का विषय हरण कर लेते हैं। वे मंदबुद्धि हैं। यह कुछ ऐसी बात है कि कोई पारसमणि पा जाय लेकिन उसे इसलिए फेंक दे कि उसमें ऊपरी चमक नहीं है। और वही व्यक्ति चमचमाते कॉंच के टुकड़ों को इकट्ठा कर ले। ऐसी ही मूर्खता ज्ञान और भक्ति को छोड़ कर केवल विषयों के सहारे ही जीवन जीने की है।

"नहिं दरिद्र सम दुख....." :-दरिद्रता के समान संसार में दुख नहीं है। धन अर्थ की कमी माना कि बहुत दुख देती है। बच्चों के खाने का इंतज़ाम करना है या कि स्कूल की फ़ीस देनी है, पैसे नहीं हैं तो नींद भी नहीं आएगी। लेकिन इससे भी बड़ा दरिद्र वह है जिसे संतोष न हो। आज किसी भड़सार की हुई जिन्स का भाव गिर गया, या शेयर का भाव गिर गया तो ऐसे लोग चिंता करते करते बीमार भी पड़ जाते हैं।

 रोगी हो जाते हैं। मज़दूरों के हार्टफेल कम होते हैं। अत्यावश्यक बस्तुओं की जब तक कमी महसूस न हो तब तक व्यर्थ की चिंता से परेशान नहीं होना चाहिए। परमात्मा पर भरोसा रखने वाला शहंशाह होता है।

कृशकाय शरीर पर बृक्षों की छाल लपेटे शरीर के सुतीक्ष्ण प्रभु राम से वनवास के समय कहते हैं,"नाथ सकल साधन मैं हीना"

प्रभु आपने तो मुझे जीवन के सुख के सभी साधन उपलब्ध करा दिए हैं। इतना निर्मल सरोवर का जल, इतनी शुद्ध शीतल हवा, इतने सुन्दर छाया तथा पेट की क्षुधा तृप्त करने के लिए फल देने वाले बृक्ष, इतना शांत वातावरण, सब कुछ दिया है।

 वह तो मेरी ही हीनता है कि इतना सबकुछ पाकर भी मैं आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर पा रहा हूँ। कमी भी महसूस हुई तो भक्ति की, सांसारिक साधनों की नहीं। जब कि भक्ति इतनी प्रबल रही कि राम को उस वियावान जंगल में संत से मिलने नंगे पॉंव जाना पड़ा।

"जिनको कछू न चाहिए सो शाहन के शाह"
"संत मिलन सम सुख जग नाहीं":

भुशुण्डिजी कह रहे हैं कि संत के मिलने के समान संसार में सुख नहीं है। संतों के गुणों पर मानस में पहले भी कई बार कहा जा चुका है। संत वह है जिसका मन,वाणी, कर्म से परोपकार में ही लगने की प्रवृत्ति हो। ख़ुद कष्ट उठा कर दूसरे को जो लाभ या सुख पहुँचाए वह संत है।

 इसके विपरीत अपने सुख के लिए दूसरे को कष्ट में डालना असंत का काम है। यही नहीं अगर स्वयं को भी कोई दुख या कष्ट उठाना पड़े लेकिन दूसरे को हानि, दुख या कष्ट हो तो असंत वह भी करने से नहीं चूकते।
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भुशुण्डिजी संत असंत का भेद बता रहे हैं। गोस्वामीजी ने तो कथा प्रारंभ करने से पहले ही संत असंत दोनों के चरणों को पहले प्रणाम करके लेखनी आगे चलाई है। संत तो स्वयं कष्ट उठा कर दूसरों की भलाई के लिए तत्पर रहते हैं। वहीं असंत भी स्वयं कष्ट उठा कर दूसरों को दुख देने में आनन्द का अनुभव करते हैं।

 गोस्वामीजी का संत बिछुड़ने पर दुख देता है और असंत तो मिलने पर दारुण दुख देता है। दोनों दुख देते हैं। "मिलत एक दारुन दुख देई। बिछुरत एक प्रान हरि लेई।।" पाप कर्म करते करते व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरों को दुख देने वाला बन जाता है। इसे असंत का लक्षण बताया है।

 प्रकृति से भोजपत्र-सन, सॉंप चूहा, ओले आदि के उदाहरण से संत-असंत का भेद स्पष्ट करते हैं। (इन उदाहरणों के माध्यम से गोस्वामी जी व्यक्ति की आंतरिक बृत्ति का दर्शन करा रहे हैं। अगर बृत्ति ठीक नहीं है तो बाहरी आडम्बर, जाप, पूजा, भजन, शास्त्र ज्ञान सब व्यर्थ है। )

भोज पत्र के बृक्ष की खाल को परत दर परत उतार कर पिटाई की जाती है। सुखाया जाता है। फिर उस पर लेखन कार्य होता है जिससे विद्या ज्ञान का वितरण होता है। ऐसी उसकी संत वृत्ति है। वहीं सन का पौधा भी अपनी खाल उतरवाता है। उससे रस्सी बनती है जो बॉंधने के काम आती है। बंधन तो दुखदायी ही होता है। यह असंत वृत्ति है कि स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों को दुख देना या दुख का कारण बनना।

 सॉंप और चूहा दोनों बिना किसी कारण के दूसरों को जीवन हानि या सम्पत्ति हानि पहुँचाते हैं। कभी कभी तो दुष्ट लोग दूसरों को हानि पहुँचाने में स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं जैसे ओले जब गिरते हैं तो ख़ुद तो गिर कर नष्ट होते ही हैं, फ़सल को भी नष्ट कर डालते हैं।

 दुष्ट इस तरह जगत के लिए दुखदायी होता है जैसे प्रसिद्ध अधम ग्रह केतु का उदय होता है तो या तो महामारी होगी नहीं तो अकाल पड़ेगा। वहीं संतों का अभ्युदय विश्वभर को सूर्य और चंद्रमा की तरह सुख देने वाला होता है।

 अब पाप क्या है, पुण्य क्या है, इसको स्पष्ट करते हैं।

 कह रहे हैं कि श्रुतियों के अनुसार सबसे बड़ा धर्म अहिंसा है। किसी को शारीरिक हानि पहुँचाना तो हिंसा कही ही जाती है, उसे कष्ट पहुँचाना या अपमान करना भी हिंसा है। जो व्यक्ति अहिंसावादी होगा उसमें क्षमा, सहन करने की शक्ति जैसे गुण होंगे ही। मानस में सत्य को भी सबसे बड़ा धर्म बताया है। सत्य और अहिंसा दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं और दोनों ही श्रेष्ठ हैं। गांधी जी ने इन दोनों के नारे से ही अपने सत्याग्रह आंदोलन को बल दिया था। कारगर साबित हुआ।

 अब पाप की बात करते हुए कहते हैं कि दूसरों की निंदा करने से बड़ा पाप नहीं है। जब हम किसी की बुराई देखते या सुनते हैं तो वे बुराइयॉं हमारे नेत्रों या कानों से हमारे मन वुद्धि में पहुँच कर अपने कलुष की छाप छोड़ जाती हैं। हम अगर बाहर कीचड़ से होकर आऐं और घर में घुसें तो कीचड़ के निशान घर में भी पहुँच जाऐंगे ही। हम सब कोई इतने जागरूक तो सदा रहते नहीं हैं कि बाहर की सुनी बात का हम पर कुछ असर नहीं हो। बुराई तो समाज में चारौ तरफ भरी पड़ी है। कहीं से भी घुस पड़ेगी।

आध्यात्मिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम न किसी की बुराई बोलें न सुनें। (यह सूत्र गोस्वामी जी सब साधकों को अपने जैसा मान कर कह रहे हैं। अर्थात ऐसा साधक जो एक दम पवित्र है और अपने पर कोई धब्बा नहीं चाहता)

यहॉं गोस्वामीजी गरुड़ पुराण आदि शास्त्रों के आधार पर विभिन्न श्रेणी के निंदक लोगों की क्या गति होती है , उसका दर्शन करा रहे हैं।

 अपने पापों का फल भोगने के लिए व्यक्ति नरक में जाकर यातनाशरीर प्राप्त करता है। फिर कुछ समय नरक में कष्ट भोगकर अपने स्वभाव की प्रधानता वाला निम्न योनि का शरीर प्राप्त करता है। (इस कथन में लग रहा है जैसे भुशुंडि जी कह रहे हैं कि हम स्वयं इस न्याय प्रक्रिया के प्रमाण हैं। )

देवता और श्रुतियों की निंदा करने वाले लोग रौरव नरक में जाते हैं। जिन्हें स्वभाव से ही ज्ञान का प्रकाश सुहाता नहीं है, मोह की रात ही अच्छी लगती है, वे उल्लू बन कर जन्म लेते हैं।

उल्टी बुद्धि के वो लोग जिन्हें सब में बुराई ही दिखाई देती है और जो निंदा ही करते रहते हैं,उन्हे उल्टा ही टँगा रहने के लिए चमगादड़ का शरीर प्राप्त होता है।

 मनुष्य की आंतरिक वृत्तियों और रुचि पर नज़र रखी जा रही है। जो जैसा है उसको वैसी ही योनि का भोग भोगना पड़ता है।

                                             G R Meghwal